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Rahat Indori ghazal in Hindi |
मैं लाख कह दूँ कि आकाश हूँ ज़मीं हूँ मैं
मगर उसे तो ख़बर है कि कुछ नहीं हूँ मैं
अजीब लोग हैं मेरी तलाश में मुझ को
वहाँ पे ढूँड रहे हैं जहाँ नहीं हूँ मैं
मैं आइनों से तो मायूस लौट आया था
मगर किसी ने बताया बहुत हसीं हूँ मैं
वो ज़र्रे ज़र्रे में मौजूद है मगर मैं भी
कहीं कहीं हूँ कहाँ हूँ कहीं नहीं हूँ मैं
वो इक किताब जो मंसूब तेरे नाम से है
उसी किताब के अंदर कहीं कहीं हूँ मैं
सितारो आओ मिरी राह में बिखर जाओ
ये मेरा हुक्म है हालाँकि कुछ नहीं हूँ मैं
यहीं हुसैन भी गुज़रे यहीं यज़ीद भी था
हज़ार रंग में डूबी हुई ज़मीं हूँ मैं
ये बूढ़ी क़ब्रें तुम्हें कुछ नहीं बताएँगी
मुझे तलाश करो दोस्तो यहीं हूँ मैं !
by राहत इंदौरी
3 टिप्पणियां:
Wah.....Ye gazal hmesa Rahat Indori ji ki yad dilayegi.....
Wah.....Ye gazal hmesa Rahat Indori ji ki yad dilayegi.....
bilkul sahi kaha..thanku
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